आज कल दिमाग में ये बात कई बार आती जाती रहती है। आते वक्त ये एक आदमी के साए के रूप में आती है जो कभी मेरे बगल बैठा हुआ रहता है या साथ चल रहा होता है। लौटने तक उसकी चहलकदमी मेरे पीछे छूट जाती है और बस बेचैनी रह जाती है। ये बात के बस याद आने से लेकर उसके टीस में बदल जाने तक का सफ़र था। यादों की तरह, हकीकत पर भी किसी का कोई काबू नहीं है। कौन कब किस दरवाज़ के उस पार...
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Monday, 27 May 2024
Thursday, 1 June 2023
क्यों होती हैं रातें
जब भी लिखा, रात की पढ़ाई के कोटे को आधा या पूरा का पूरा करके लिखा। 2 बज गए, सुबह 5 बजे उठकर तैयार होकर 6 बजे तक कॉलेज के लिए निकल जाना था, पेपर ठीक 7:30 में शुरू हो जाते हैं। सो सोचा कि अब सोने की कोशिश की जाए, मालूम है की बमुश्किल 2 या 2.5 घंटे की नींद ही नसीब होती पर मन को तसल्ली रहती की 3 घंटा पहले सोने चले गए थे। दैट शूल्ड डू। पर सर को बिस्तर पर रखते ही, तन की सारी...
Thursday, 20 December 2018
कमरा
हम जो लिखना चाहते हैं, वो ये नही है। वो न तो कोई कहानी है न प्रसंग है। अगर कुछ है तो बस व्यथा है उस आदमी की जो एक अँधरे कमरे में फँस गया है और छू कर देख रहा है दीवार की सतह को, खोज रहा है कोई किवाड़ या खिड़की या फिर कोई छेद ही हो जिसे चूहों ने बनाई होगी; पर न आँखों को कुछ नज़र आ रहा होगा, न उसके हाथ ही कुछ देख पा रहे होंगे। अगर कमरे में कोई और होता, जो बिना रोशनी के देख सकने...
Thursday, 16 August 2018
The Crack
Hopped up on my 12:43 Metro Train,
in the tunnel just before my station,
I see a caged bulb placed on its wall.
The cracks around it, runs quite deep,
and has its edges smothered by pain
the pain of witnessing countless faces
pass by
and not knowing what happens to them.
The pain of not knowing how the faces
shine when the ray of sun falls on them.
The pain...
Friday, 20 April 2018
खिलौना
कमरा छोटा है... डार्क ऑरेंज रंग के पर्दे हवा की वजह से नाच रहे, थोड़ी रोशनी आ रही है उनके खिड़की से हटने पर। फर्नीचर जो कि यूँ तो नॉन एक्सिस्टन्ट हैं, धीरे-धीरे फ़ोकस में आ रहे हैं। एक स्लेटी रंग का स्टूल है जिसपे एक लैंप रखा है। उस लैंप से पीलिया फैल रहा है इस कोने से उस कोने तक।
कमरे के बीच में एक लकड़ी की कांफ्रेंस टेबल है जिसपे एक खिलौना रखा है, प्लास्टीक का, चटक...
Saturday, 18 November 2017
पत्थर की रूह
हम हर दिन हवा में एक पत्थर उछालते हैं पूरा दम लगाकर। पत्थर नीचे गिर जाता है। उसकी रूह मगर हवा में तैरने लगती है। पत्थर इन्विज़िबल है पर उसकी जो रूह है वो है नारंगी रंग की। जब सूरज डूबने लगता है तो मेरे प्यारे पत्थर की रूह सूरज से लिपट जाती है। दुनिया के काली नज़र से चाँद पर धब्बे पड़ चुके हैं, ये उसे पता है। इसलिए वो अकेले सूरज को बचाना चाहती है अपने बल बूते पर।
वो नीचे आती है...
Saturday, 10 June 2017
तो बस यूँ हीं।
हमारी फ़्रेंडलिस्ट में आपको देश के ऑलमोस्ट हर कोने के रिप्रेजेंटेटिव मिल जाएँगे। फिर चाहे वो लेह हो या फिर सिक्किम। साउथ के भी हैं, और कश्मीरी भी है। नेपाली भी हैं तीन ठो! पर सबसे ज़्यादा उत्पात हमारे जीवन में जो कहिये, इन यूपी वालों ने मचा रखा है। इतने तो बिहारी भी हैपनिंग नही हैं हमारे जीवन में, जितने ये हैं। ऊपर से ये दिल्ली वाले तो हाय! क्या ही ख़ूब हैं। कोई...
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