Tuesday 14 February 2017

भोलेनाथ

देखिये पुराणों से जुड़ी है ये घटना, शिव पुराण तो मैंने पढ़ा नहीं, न ही कभी शिव कथा को पूरी तरीके से पढ़ा या सुना है पर आज अचानक से फेसबुक वॉल पे घूमते-घूमते शिव जी की इक तस्वीर आँखों के सामने आ गयी और साथ ही साथ नानी की वो कहानी भी। 
तो हुआ यूँ की इक बार महालक्ष्मी शायद ऐसे ही किसी अलसायी सी दुपहरी में बैठी श्रीविष्णु के चरण-कमल दबा रहीं थी। अब बोरियत तो हो ही जाती है एक ही काम करते-करते। तो वो अपने पतिदेव से हठ करके बोलीं कि "हे प्रभु, आप कभी मुझे कहीं घुमाने क्यों नहीं ले चलते?कितने दिन हो गए, हम कैलाश नहीं गए।" इतना सुन विष्णु ने भी थोड़ा भाव चढ़ाया पर फिर सोचा की अगर कैलाश गए तो हिल-स्टेशन जैसा कुछ ट्रिप हो जायेगा। प्राणप्रिये भी प्रसन्न हो जाएँगी और हम विष्णु लोक की इस ह्यूमिडिटी से भी थोड़ा सा बच जाएंगे। तो दोनों गरुड़ पर विराजमान हो, पहुँच गए कैलाश।
अब कैलाश पर जटाधारी शिव उलंग हो भस्म से विभूषित विराजमान हैं। उनको इस अवस्था में देख लक्ष्मी तो तुरंत हो लीं देवी उमा की ओर। अब इत्ती शिकायतें करने में भी टाइम लगता है ना। कित्ते फेमिनिस्ट प्रपोजल शेयर करने थे। कित्ति सारी महिला सशक्तिकरण परियोजनाओं की नींव रखनी थी। इन सब टाइम कॉन्स्युमिंग चीजों का अंदाज़ा विष्णु लगा के बैठे थे, तो उन्होंने भी शिव के बगल रखे एक चट्टान पे स्थान ग्रहण कर लिया।
आस-पास देखा तो नज़र आई कैलाश की हरी-भरी सुंदरता। क्या पुष्प, क्या लता, क्या चंदन, क्या सुगंध और इन सब के बिच बैठे हुए नंदी। थोड़ा और नज़र फेरा तो पेड़ों के पीछे कुछ खाली स्थान नज़र आया। ये देख शिव को उलझाते हुए वो बोले कि "हे उमानाथ, यूँ जो उलंग-उचक्के टाइप्स बैठ के टाइम पास करते हैं आप, क्या आपको शोभा देता है? आप एक काम करें, ये जो पीछे खाली जमीन है, उपजाऊ भी है, आपकी जटाओं से बह रही गंगा द्वारा पोषित भी हो जायेगी, उसका आप इस्तमाल खेती-बाड़ी में क्यों नहीं कर लेते?"
भोलेनाथ मुस्कुराये, विष्णु को देखा और चुप रहे। पीताम्बर ने अपनी बात को बढ़ाते हुए कहा कि  धान बों लें आप । नंदी से हल जुतवा लीजियेगा। सब गण मिलके मजदूरी कर लेंगे। अरे, ऐसा करके माँ अन्नपूर्णा की जो कृपा बनी रहेगी संसार पे उसके विषय में सोचिए। शिव ने फिर मुस्कुराया, हामी भरी और बाँकी जरूरी विषयों पे बात करने लगे। ये जो आज-कल सारा का सारा कलयुग वो क्या कहते हैं वो हाँ, 'कर्रप्शन', 'स्कैम', जैसी तरह-तरह की विपदाओं से घिरा पड़ा था, उसके रेस्क्यू मिशन की तैय्यारी भी तो करनी थी; फिर ब्रम्हा जी के साथ मिल कर कुछ नए कैरक्टर भी पृथ्वी पर भेजने थे ताकि सिचुएशन अंडर-कण्ट्रोल रह सके। जब महिला आंदोलनों  की आउटलाइन तय हो गई और पृथ्वी के सेल्फ डिस्ट्रक्शन मोड को थोड़ा और डिले कर दिया गया, तो लक्ष्मी और विष्णु ने भी उमा और उनके नाथ से विदा ले लिया।
जब कई मौसम और बीत गए और पुनः लक्ष्मी ने कहीं बाहर जाने की बात  छेड़ी तो इससे पहले वे कहीं और जाने की ज़िद्द करती, विष्णु तपाक से बोल पड़े 'हे भाग्यवान, आप तो भाग्य बनाती या बिगाड़ती हैं, आप खुद क्यों मुझ पर बिगड़ रही हैं, कल नारद आये थे, बता रहे थे की कैलाश पे आज-कल कुछ नया हो रहा है, वहीँ चलते हैं, आप  पार्वती से 'सफ़्फ़्रेज' मूवमेंट की बात कर लेना और हम तब तक महादेव के साथ कैलाश के दो चक्कर लगा लेंगे, सेहत का ख्याल रखना भी ज़रूरी है प्रिये, यूँ लेटे-लेटे हड्डियों में कोई नयी बिमारी आ गयी तो, वैसे भी आज कल पृथ्वी लोक पे आना-जाना काफी बढ़ गया है हमारा, क्या पता कौनसी नई 'कम्युनिकेटिव' बिमारी फैली हो, जो मुझे भी लग जाये। थोड़ी खुली हवा में टहलने से स्वास्थ अपने आप ठीक हो जायेगी।" फिर क्या, फिर वे चल दिये।
 जैसा को हमेशा होता आया है, पार्वती जी के साथ माँ लक्ष्मी मानसरोवर के तट की ओर बढ़ गयीं और विष्णु आंजू-बांजू  नज़र फेर कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए शिव के बगल में विराजमान हो गए और बोले, "धन्य है आप महेश, आपने मेरी बात का मान रख। देखिये ये जो आपने फ़सल  लगाई है, कितनी सुन्दर प्रतीत हो रही है, इस  हलकी-हलकी हवा में झूम रहे ये तो किसी नवजात शिशु की किलकारी के समक्ष प्रतीत होते हैं।" शिव फिर बस मुस्कुरा  दिए! न जाने वायु देव को क्या सूझा, वे फसलों में से  होते हुए, जहाँ देवादि देव विराजे थे, उस ओर बहने लगे, फिर क्या, पीताम्बर को के स्वांसों में एक अलग ही खुशबु मिश्र  होने लगी और वे थोड़ा चौंक  ',हे प्रभु, ,आज तो आप चिलम का भी प्रयोग नहीं कर रहे, फिर ये महक कैसी?" भोले नाथ ने बड़ी भोली सी शक्ल बना कर साफ़ साफ़ उत्तर दे दिया, "हे सृष्टि के पालनहार,आपने ही तो कहा था की जिसकी ज़रूरत हो, उसकी खेती कर डालूँ , अब इतने सारे गण हैं, इतने सारे साधू सन्यासी, उनकी ज़रूरर्तों को पूरा करने के लिए मैंने भांग की खेती ही कर दी, इनसे उनकी भी जरुरत पूरी हो गयी और मेरी भि।" उनके इस उत्तर को सुनकर विष्णु अचंभित हो गए और नतमस्तक होकर बोले, हे उमानाथ, आपसे भोला नै कोई हुआ है, ना कोई होगा, आप धन्य हैं प्रभु"। बस बात कुछ और चली, नेताओं की चर्चा, शान्ति की चर्चा, मोह की चर्चा, माया की चर्चा और जब इन चर्चाओं पे विश्राम लगाने का वक़्त आया तो लक्ष्मी और विष्णु को विदा कर, महादेव ने अपनी पलटन को बुलाया और नंदी के पीछे- पीछे अपनी खेतों में चल दिए।

बस कहानी खतम। पैसा हज़म।

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