Thursday 1 June 2023

क्यों होती हैं रातें

जब भी लिखा, रात की पढ़ाई के कोटे को आधा या पूरा का पूरा करके लिखा। 

2 बज गए, सुबह 5 बजे उठकर तैयार होकर 6 बजे तक कॉलेज के लिए निकल जाना था, पेपर ठीक 7:30 में शुरू हो जाते हैं। सो सोचा कि अब सोने की कोशिश की जाए, मालूम है की बमुश्किल 2 या 2.5 घंटे की नींद ही नसीब होती पर मन को तसल्ली रहती की 3 घंटा पहले सोने चले गए थे। दैट शूल्ड डू। 

पर सर को बिस्तर पर रखते ही, तन की सारी मायूसी, मन की सारी उदासी चादर की तरह देह से लिपटती चली गई। लगा की कोई साथ होना चाहिए था जो इस चादर को मेरे देह पर से हटा दे इससे पहले ये मेरे मुंह से खुद को लपेटे मुझे asphyxiate कर दे, मानी, मेरा दम घोट दे। 

हाथ आगे बढ़ाया, फोन खोला, सोचा की क्या कहेंगे की आखिर क्या हुआ, स्क्रॉल किया और मालूम हुआ कि कोई ऐसा नहीं जिससे उदासी बांट लें, जिसके उंगलियों को अपने माथे तक जाने की अनुमति दे दें, जिसके सीने पर सर रखें पर कुछ कहें नहीं, उसकी धड़कन को समझा बुझा लेने दें खुद को। 

तब याद आया की यही अकेलापन था जो हाथों को खींच कर यहां लाया था। इस ब्लॉग तक। तो आज फिर वही किया, खुद को यहां ले आए। सुपुर्द कर दिए कीबोर्ड को खुद को, की वो अपने हिसाब से लिखवा ले जो भी दिल में आए। शब्दों को न ढूंढे, बस बात बांट लें, मानो रात के आने के पीछे का कारण बातों का बांटा जाना हो। 
आज क्या हुआ? दो बहुत ही बलवान, बुद्धिजीवी, सज्जन और सेल्फ_लेस लोग की आपसी मतभेद हो गई, मतभेद केवल उत्तक सीमित था पर उसका प्रभाव आस पास की आबादी पर मुठभेड़ के मानक पड़ी। 

Share this

0 Comment to "क्यों होती हैं रातें"

Post a Comment