Thursday, 20 December 2018

कमरा

हम जो लिखना चाहते हैं, वो ये नही है। वो न तो कोई कहानी है न प्रसंग है। अगर कुछ है तो बस व्यथा है उस आदमी की जो एक अँधरे कमरे में फँस गया है और छू कर देख रहा है दीवार की सतह को, खोज रहा है कोई किवाड़ या खिड़की या फिर कोई छेद ही हो जिसे चूहों ने बनाई होगी; पर न आँखों को कुछ नज़र आ रहा होगा, न उसके हाथ ही कुछ देख पा रहे होंगे। अगर कमरे में कोई और होता, जो बिना रोशनी के देख सकने...