तुम मेट्रो के ए.सी. डिब्बे से,
मैं लोकल की टूटी सीट प्रिये।
तुम जार हो फ्री न्यूटेला के,
मैं जैम की सीसी खाली प्रिये।
तुम कोलाहल के आंधी से,
मैं मुट्ठी भर बरसात प्रिये।
तुम उजियारा दिनकर का,
मैं निपट अँधेरी रात प्रिये।
तुम बोतल सील पानी के,
मैं दो टके की गिलास प्रिये।
तुम रास में डूबे गिरधारी ,
मैं गोपी तुमपे मतवारी प्रिये।
तुम उड़ते नभ् में रहने वाले,
मैं माटी में सनकर राख प्रिये।
तुम हर रिसिव्ड मेसेज से,
मैं खाली पड़ी ड्राफ्ट प्रिये।
तुम ओस की पहली बूँद से,
मैं धुप की तपती आह प्रिये।
तुम मंजिल कोई दुर्लभ वाली,
मैं उस तक जाती हर राह प्रिये।
तुम भीड़ सोफिस्टिकेटेड से,
मैं देहात की अल्हड़ बारात प्रिये।
तुम ब्रेड किसी महँगी बेकरी के,
मैं मिथिला की मखान प्रिये।
तुम मेट्रो के ए.सी. डिब्बे से,
मैं लोकल की टूटी सीट प्रिये।
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