मेरी छोटी सी दायीं मुट्ठी ,
और इसमें बंद बड़े से तुम|
तुम्हारे ये बड़े-बड़े ख्वाब
इन ठिगनी उँगलियों में उलझे|
और इनकी नाज़ुक सी गिरफ्त
जिसमे कैद तुम्हारी जिंदगी|
पकड़ ढीली महसूस कर,
फिसल जाते तुम्हारे अरमान|
और गिरते ज़मीं पर ''धप्प!''
दबोचकर फिर उठाती मैं उन्हें,
हौले से सहला उन्हें बहलाती
और मुट्ठी में बंद तुम्हे सौंप देती|
तुम छिटपिटाते बाहर आने को
पर लोरी गा तुम्हे मैं सुला देती|
मन मसोस, तुम सुस्त पड़ जाते
और निहारते दरीचे से दुनिया को|
हाँ कभी फिर दिल पिघलता मेरा
और तुम्हे ज़रा सा बाँट लेती मैं;
शाख से टूटे सुर्ख लाल पत्ते से,
सड़क पर खड़े अबोध बच्चे से|
मेरी छोटी सी ये दायीं मुट्ठी,
जिसमे कैद तुम्हारी जिंदगी|
❤️
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